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कविता

आपन गीत हम लिखब...

प्रतिभा कटियार


अब अपनी बात हम खुद लिखेंगे
जैसे चाहेंगे वैसे जिएँगे
न जी पाएँगे अगर मर्जी के मुताबिक, न सही
तो उस न जी पाने की वजह ही लिखेंगे,
हम खुद लिखेंगे चूल्हे का धुआँ
सर का आँचल और बटोही में पकती दाल के बीच
नन्हें के पिपियाने की आवाज और
ममता को ठिकाने लगाकर भूखे बच्चे को पीट देने की वेदना
हम खुद लिखेंगे अपनी उगार्इ फसलों की खुशबू
और कम कीमत पर उसके बिक पाने की तकलीफ भी
यह भी कि निपटाते हुए घर के सारे काम
कैसे छूट ही जाता है हर किसी का कुछ काम
और देर हो ही जाती है आए दिन ऑफिस जाने की
कि हर जगह सब कुछ ठीक से जमा पाने की जिद में
कुछ भी ठीक न हो पाने की पीड़ा भी हम ही लिखेंगे
लिखेंगे हम खुद कि जिंदगी के रास्तों पर दौड़ते-दौड़ते भी
चुभती हैं स्मृतियों की पगडंडियों पर छूट गर्इ परछाइयाँ
और मुस्कुराहटों के पीछे कितनी चीखें छुपी हैं
न सही सुंदर, न सही इतिहास में दर्ज होने लायक
न सही भद्रजनों की बिरादरी में पढ़े-सुने देखे जाने लायक
फिर भी हम खुद ही लिखेंगे अपने बारे में अब सब
और खुद ही करेंगे अपने हस्ताक्षर अपनी रचनाओं पर
 


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हिंदी समय में प्रतिभा कटियार की रचनाएँ